रविवार, 21 अप्रैल 2019

उत्तर प्रदेश में जनसुनवाई पोर्टल की हकीकत

मुख्यमंत्री की मेल पर आटो मेल की जाती है जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज करें।शिकायती पत्र मेल या स्पीड पोस्ट से भेजने के बाद भी जनसुनवाई पोर्टल पर फर्जी निस्तारण।

हमारी कई शिकायतें पिछले कई वर्षों से जस की तस पड़ी है 19 मार्च 2017 को प्रदेश के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बड़ी जीत के बाद योगी आदित्यनाथ जी ने 21वें मुख्यमन्त्री पद की शपथ ली थी। उसके बाद एक उम्मीद जागी अब कुछ बदलाव आयेगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कहावत है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते है। बिल्कुल फिट बैठता है सरकार किसी भी पार्टी की बने जनता को सरकार से विकास की बात करने का हक नहीं जी हाँ ऐसा इसलिए सरकारी अधिकारी जनसुनवाई पोर्टल की खुलेआम उड़ा रहे है धज्जियां। गलत और झूठी आख्या लगाकर झाड़ रहे पल्ला। माननीय मुख्यमंत्री जी से प्रश्न है जनसुनवाई पोर्टल किस लिए बनाया गया है? यहां ना तो कोई काम होता है ना तो कोई सही सुनवाई की जाती है सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाया जाता है। जनसुनवाई पोर्टल का कोई फायदा नहीं मिल रहा आम लोगों को ऐसे पोर्टल का क्या मतलब है? 
हाँ ये तो जनसुनवाई पोर्टल की बात हो गई अब सरकार के मुखिया से लेकर मंत्री जी के साथ विधायक तक को विकास कार्य से सम्बंधित या अन्य कोई भी समस्या को आप मेल करें या स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजे उस पर कोई भी सुनवाई नहीं की जाती है। जिले के मुखिया से लेकर मण्डलायुक्त तक को शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। जागरूक आम इंसान जब क्षेत्र के विकास की पहल करता है। ग्राम प्रधान से लेकर ब्लाक के अधिकारी खफा हो जाते है। ज्यादा कुछ कार्यवाही की जाती तो फोन करके बोला जाता क्यों परेशान कर रहे हो। 
अगर क्षेत्र के कार्यों की पड़ताल करने के बारे में किसी ने सोचा सूचना का अधिकार के तहत जानकारी ले ली जाये तो भी उसको कोई जानकारी नहीं दी जाती है। चाहे जैसे भी प्रयास कर लिए जाये लेकिन कलम के जादूगर अधिकारियों को महारत हासिल हो चुकी है। आम लोगों को कीड़-मकौड़ों की तरह समझते है। 
स्वयं मेरे द्वारा सैकड़ों की संख्या में शिकायतें दर्ज कराई गई है। पिछले 04 वर्ष में यह तो समझ आ गया है सब दिखावा है। हकीकत तो यह है डिजीटल इंडिया की बात की जाती है जिले के अधिकारी से लेकर सरकार सोशल मीडिया को चलाने के लिए प्रचार प्रसार के लिए एडमिन बना रखे है। जिनके पास सिर्फ अपनी बात रखने का अधिकार है। सामने वाले की बात को बिल्कुल भी सुना समझा नहीं जायेगा ऐसे में कैसे किस पर भरोसा किया जाये?

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