सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

पत्रकारिता क्या है?

पत्रकारिता के पेशे में सवाल पूछना एक कला है। क्या यह कला जिंदा है?


आज के समय की पत्रकारिता में सिर्फ चाटुकारिता हो रही है, लेकिन सही मायने में समाज में घट रही घटनाओं की समीक्षा और विचार रखना और वो भी निष्पक्ष भाव से जो आज के समय में अपेक्षित नहीं है। जब हम किसी व्यक्ति विशेष या संघ से असहमत होते हैं तब एक अलग सोच या विचारधारा पनपती है बस यहीं से फर्क शुरु हो जाता है क्योंकि हम अपनी ही सोच या विचारधारा को महत्व देते हैं। 

सत्ता और पत्रकारिता में वैसे भी सांमजस्य नहीं बैठ सकता है आज पत्रकारिता चाटुकारिता करके भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि चाटुकारिता करके भी अपमानित होना पड़ता है.. और अगर ज्यादा बुलंद आवाज की तो झूठे केस भी बन जाते हैं और हत्या होने की भी संभावना बनी रहती है। 

आज अखबार चलाने वाले संपादक जनता की समस्याओं के लिए नहीं अखबार चला रहे देशी भाषा में कहा जाये तो अपनी दुकान चलाने के लिए संपादक बनकर रौंब झाड़ना टीम में पत्रकार कोई भी बन सकता है चाहे उसे पत्रकारिता की जानकारी हो या ना हो सिर्फ सुविधा शुल्क दीजिए आईडी कार्ड लीजिये, गाड़ी में लगाने के लिए स्टीकर, भूकाल के लिए माइक इन सबका भुगतान कर दीजिए बन गये कार्यकारी सम्पादक पत्रकार / संवाददाता / छायाकार / संवादसूत्र / जिला मीडिया प्रभारी इस तरह के अन्य पदों से सुसज्जित किया जाता है। अखबार छपता कहा है? दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक है पत्रकार को नहीं मालुम कितने पेज का है ये भी नहीं मालुम, ये पत्रकारिता है? कापी पेस्ट की दम पर हो रही पत्रकारिता। 

चैनल की पत्रकारिता...!

आज हर चैनल डिबेट के नाम पर बहस नहीं झगड़ा-फसाद होने लगा है बहस इतनी ज्यादा तीखी हो जाती है भाषा का नियंत्रण खो दिया जाता है। जैसे कि इन टीवी बहस में देखा जा सकता है। कुछ खास विषय पर चैनल पर प्राइम टाइम पर तीखी बहस नोक-झोक होती रहती है क्या यह उचित है? इन मुद्दों को छोड़कर और भी देश में अनेको बहुत से मुद्दे हैं। टीवी पर डिबेट करने की हिम्मत उस पर कीजिए जिसमें सवाल पक्ष और विपक्ष दोनों से हो सरकार कि नाकामियों पर पर्दा डालना क्या यही सच्ची पत्रकारिता है? 

चैनल पर खबर.....!

देश में विकास, गरीबी, शिक्षा, बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दे है जिन्हें प्राथमिकता के साथ अगर उठाया जाये शासन-प्रशासन से सवाल किये जाये लेकिन एैसा कोई क्यों नहीं करना चाह रहा है?

एक बात नोटिस करने वाली है कि हर चैनल पर किसी एक मुद्दे को ही चलाया जाता है एैसा क्यो..? किसके इशारे पर मीडिया चलती है? चैनल के दर्शक दूसरा चैनल बदलते है तो वहां भी वही खबर लगभग हर चैनल पर एक ही खबर को दिखाया जाना कहा तक उचित है? 

पत्रकारिता में गलत लोग...!

पत्रकारिता के नाम पर अनैतिक लोगों ने देश तंत्र, संस्थाओं, संविधान की सुविधाजनक व्याख्या कर बदनाम कर दिया है। पत्रकारिता में आज बड़े उद्योपति जुड़ रहे है जिनका पत्रकारिता से कही दूर तक का कोई नाता नहीं लेकिन बड़े पत्रकारिता के बड़े संस्थान चला रहे है इस कारण से आज पत्रकारिता का चौथा स्तंभ को बिकाऊ कहा जा रहा है इसका जिम्मेदार कौन है? एक पत्रकार फील्ड पर कड़ी मेहनत करके अपनी जान से खेल कर किसी मामले का खुलासा करता है तो संपादक/उद्योगपति उस खबर को चलने से रोक लगा देता है अब खुलासा करने वाला पत्रकार इस खबर के लिये निजी दुश्मन बन जाता है। पत्रकार की मजबूरी जीवन-यापन करने के लिए चाह कर भी संस्थान से बैर नहीं ले सकता है। दुश्मनी तो हो चुकी है एैसे ही पत्रकारों का मनोबल गिरता जा रहा है। जिसके जिम्मेदार लोग पत्रकारिता के नाम पर अपनी दुकान चला रहे है। 

खोजी पत्रकारिता....!

खोजी पत्रकारिता तो गायब हो गई है आज चैनल से लेकर अखबार तक में कोई भी एैसा मामला नहीं उठाया जा रहा है जिससे किसी मामले का खुलासा हो सके कहा गायब हो गये है खोजी पत्रकार या उन्हें पत्रकारिता करने से रोका जा रहा है? बड़ा सवाल है। 

30 मई पत्रकारिता दिवस 

हिन्दी पत्रकारिता दिवस 30 मई को मनाया जाता है। इसी तिथि को पं0 युगुल किशोर शुक्ल ने 1826 में प्रथम हिन्दी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन आरम्भ किया था। 

जिसे पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन इस विशेष दिन पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारों को बधाईयां मिलनी चाहिये लेकिन उन्हें नहीं मिलती, बल्कि पत्रकार बिरादरी के लोग खुद ही अपनी तरफ से बधाइयां बांटते देखे जा सकते है सोशल मीडिया पर। सोशल मीडिया पर पत्रकारिता दिवस पर तो लोगों के द्वारा पत्रकारों को सम्मान मिलना चाहिये लेकिन ऐसा कही नजर नहीं आता।

पत्रकार बिरादरी खुद से पट्टलचाती करती दिखाई देती है और खुद सम्मान पाने के बजाय छुटवैयया नेताओं का सम्मान करने में ज्यादा दिलचस्पी लेते दिखाई देते है।

क्या पत्रकारों की कमी आ चुकी है? जिनको सम्मानित करने के बजाय पट्टलचाती को बढ़ावा देने के चलते नेताओं का सम्मान किया जा रहा है.?

सोशल मीडिया पत्रकारिता का माध्यम नहीं

सोशल मीडिया पत्रकारिता का माध्यम नहीं। यह कथन पटना में दिनांक 09 जुलाई 2019 को भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायूमूति चंद्रमौली प्रसाद ने कहा था 

अनपढ़ भी बन सकता पत्रकार

अनपढ़ भी बन सकता है संपादक व पत्रकार- न्यायमूर्ति चन्द्रमौली कुमार प्रसाद

17 और 18 दिसम्बर 2019 को जनपद प्रयागराज में जस्टिस श्री चन्द्रमौलि कुमार प्रसाद की अध्यक्षता में कुल 45 मामलों की हुई सुनवाई में 33 मामलों को निस्तारित किया गया था। भारतीय प्रेस परिषद की सुनवाई के दौरान एक अजीबो-गरीब मामले पर गंभीर चर्चा हुई। एक पिता ने अपने सगे पत्रकार पुत्र के खिलाफ पीसीआई में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि उसका पत्रकार बेटा सिर्फ मिडिल पास है और वो पत्रकार होने के काबिल नहीं है। इस रोचक मामले में काउंसिल ने बेटे को न पढ़ाने पर पिता को फटकार लगाई। साथ ही यह भी कहा कि भारतीय प्रेस कानून के तहत अनपढ़ चुनाव लड़ सकता है। इसी तरह बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी संपादक और पत्रकार बन सकता है। लिंक https://www.youtube.com/watch?v=3SJBJNAv8tM

भारतीय प्रेस परिषद


पत्रकारिता के मानक क्या है? पत्रकारों को भारतीय प्रेष परिषद की वेबसाइट पर जाकर ‘‘पत्रकारिता के आचरण के मानक’’ को पढ़ना चाहिए। पढ़े पत्रकारिता के आचरण के मानक लिंक https://www.presscouncil.nic.in/  

न्यूज पोर्टल के सैकड़ों पत्रकार...

देखा देखी एक न्यूज पोर्टल बना लिया और बन गए प्रधान सम्पादक, लिख दिया राष्ट्र की बात सैकड़ों पत्रकारों को सुविधाशुल्क लेकर माइक आईडी सौंप दी यूट्यूब पर एक चैनल बना लिया (100 सब्सक्राइबर) लेकिन पत्रकारों की संख्या सैकड़ों से भी अधिक, इस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय पर ध्यान देना चाहिए। 

ऑनलाइन न्यूज..?

ऑनलाइन न्यूज पोर्टल, यूटयूब चैनल क्या ये पत्रकारिता है? अगर है तो इन्हें रजिस्टर्ड कराना चाहिए तहसील, ब्लॉक, थाना, हर जगह इस तरह के लोगों की भीड़ लगी हुई है। कोई घटना होती है भीड़ से ज्यादा तो तरह-तरह की माइक फोन कैमरे से सूट करने वाले पत्रकार आ जाते है। कहा इनकी खबर चलाई जाती है कौन इन्हें देखता है? किसी भी एक ऑनलाइन न्यूज पोर्टल या यूटयूब चैनल को देखा जाये तो उनको देखने वालो की संख्या नहीं के बराबर ही होती है। फिर भी हर जगह धौंस जमाते ये लोग नजर आ जाते है। कैसे उनका गुजारा होता है? कैसे गाड़ी में पेट्रोल, कैसे अन्य खर्च वहन किये जाते है? यह सोचने विचार करने की आवश्यकता है। 

न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब का रजिस्ट्रेशन

न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल चलाने वालों को यह नहीं मालुम कि इनका भी रजिस्ट्रेशन कराकर सही तरीके से मानक के तहत चलाया जा सकता है। जिससे पत्रकारिता का चौभा स्तंभ बरकरार रहे। 

आरएनआई क्या है?

भारत के लिए अखबारों के रजिस्ट्रार का कार्यालय या भारत के समाचार पत्रों का रजिस्ट्रार (RNI), भारत का एक सरकारी विभाग है, 1 जुलाई 1956 को, 1953 में प्रथम प्रेस आयोग की सिफारिश पर और प्रेस और पंजीकरण में संशोधन करके अस्तित्व में आया। बुक्स एक्ट 1867 की। प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एक्ट में आरएनआई के कर्तव्य और कार्य शामिल हैं। http://rni.nic.in/pdf_file/hcitchart.pdf 

डीएवीपी क्या है?

डीएवीपी प्रेस, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रदर्शनियों और बाह्य प्रचार माध्यमों के जरिए गांवों तथा शहरों में सरकारी नीतियों और कायक्रमों का प्रचार-प्रसार करता है और लोगों को विकास की गतिविधियों में शामिल होने को प्रेरित करता है। विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (विदृप्रनि) भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लिए बहु-माध्यम विज्ञापन तथा प्रचार का कार्यभार उठाने वाली एकमात्र नोडल एजेंसी है। कुछ स्वायत्त संस्थाएं भी अपने विज्ञापन विदृप्रनि के माध्यम से देती हैं। सर्विस एजेंसी के रूप में, यह केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की ओर से जमीनी स्तर पर सम्प्रेषण करने का प्रयास करता है। http://www.davp.nic.in/hindi/history_hn.html

फर्जी पत्रकार पर रोक कैसे लगे

सरकार डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दे रही है- क्या सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा जिला सूचना विभाग के माध्यम से सभी संपादक के साथ बैठक करके सभी पत्रकारों का डाटा नहीं बना सकते है? सभी संपादक अपने पत्रकारों की सूचना लिखित रूप से फोटो दस्तावेज के साथ जिला सूचना कार्यालय को उपलब्ध कराये। सूचना विभाग सभी पत्रकारों को एक कोड जारी करें जिसमे बारकोड लगा हुआ हो। अगर बारकोड है तो पत्रकार है अन्य विकल्प भी हो सकते है। ऑनलाइन देखने के लिए सूचना विभाग की वेबसाइट को अपडेट किया जाये जिसमें एक क्लिक करने पर देशभर के पत्रकारों की जानकारी उपलब्ध हो राज्य के बाद जनपद डालकर पत्रकार का कोड न0 डालते ही उसकी जानकारी उपलब्ध हो सके। जिससे पत्रकारिता के क्षेत्र में फर्जी लोगों का प्रवेश पूर्णरूप से बंद कराया जा सके। इससे हर विभाग के अधिकारियों को सुविधा होगी जैसे कोई भी पत्रकार किसी विभाग के अधिकारी के पास उनसे समय लेने जाता है या फोन पर वार्ता करता है संदेह होने पर उसका कोड न0 पूछा जाये ताकि उस कोड से पत्रकार की पहचान हो सके।  

पत्रकारों के लिए बीमा कवर 

अभी हाल में ही सरकार ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा देने की घोषणा की है। मान्यता प्राप्त पत्रकारों को पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा देने के सरकार के निर्णय की सराहना होनी चाहिए। साथ ही ग्रामीण आंचलिक शहरी क्षेत्रों के गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को भी बीमा लाभ देने की कई पत्रकार संगठन ने मांग की है। सरकार को सभी रजिस्टर्ड पत्रकार जिनको सूचना विभाग द्वारा कोड न0 दिये गये है उनके लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) में बीमा सुविधा उपलब्ध कराई जाये। इसमें उन पत्रकारों को भी बीमा सुविधा दी जाये जो छोटे संस्थान में अवैतनिक पद पर रहते हुये संस्थान में कार्य कर रहे है।